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नियंत्रण एवं निर्देशन में न रहने का दुष्परिणाम

एक उदाहरण से मैं बताना चाहूंगा
कि एक बच्चा पतंग उड़ा रहा था। उसकी पतंग आसमान में काफी ऊंचाई पर उड़ रही
थी। जब उस लड़के के पास उसके पिताजी आए, तो बच्चे ने अपने पिताजी से कहा कि
यह पतंग तो काफी ऊंचाई पर उड़ रही है मगर इसमें एक बाधा है। पिता ने पूछा क्या बाधा
है? तो उसने कहा कि इस पतंग की डोर अगर काट दी जाए, तो यह पतंग आसमान में
और अधिक ऊँचाई तक उड़ सकता है। पिता ने उस को समझाने के लिए पतंग की डोर
काट दी। फिर क्या हुआ? जैसे ही उसके पिता ने पतंग की डोर काटी पहले तो पतंग कुछ
ऊँचाई पर गया फिर ,वह धीरे-धीरे नीचे की तरफ आने लगा। तब लड़के के समझ में आ
गया कि पतंग की डोर से नियंत्रण खो देने से पतंग की क्या हालत होती है? यह बताने का
तात्पर्य है कि जो उस पतंग का कार्यप्रणाली थी, उस कार्यप्रणाली से पतंग बाहर हो गया,
यानि पतंग नियंत्रण शक्ति से बाहर हो गई। जिसकी वजह से पतंग आसमान से उड़ने के
बजाय नीचे की ओर आने लगी। इसलिए जो कार्यकर्ता नियंत्रण शक्ति से अर्थात संगठन के
कार्यप्रणाली से बाहर हो जाता है वह अपने आप बाहर हो जाता हैं। ऐसे बहुत सारे
कार्यकर्ता को आपने देखा होगा।

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