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नेतृत्व एवं नेतागिरी में अंतर

प्रदेश व जिलों में संगठन के जितने भी कार्यकर्ता व पदाधिकारी हैं जैसे: अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव, महासचिव, कोषाध्यक्ष, मीडिया प्रभारी इत्यादि। ये सभी पदाधिकारी कार्यकर्ता सोचते है कि मैं लीडर हो गया। अब मैं जिले का अध्यक्ष या प्रदेश का अध्यक्ष हूं। जो कहूंगा वही होगा, ऐसा सोचने लगते हैं। मगर यह जो पद है, जिस कार्य के लिए पदाधिकारी बनाया गया है, जिस मकसद के लिए पद दिया गया है, वह पद कोई नेतागिरी का नहीं है। हमारे कार्यकर्ता पद को ही लीडरशिप समझ लेते हैं। जबकि यह पद लीडरशिप और नेतागिरी के निर्माण करने के लिए दिया जा रहा है, ताकि कार्यकर्ताओं के अंदर लीडरशिप पैदा किया जा सके। चूंकि लीडरशिप व्यक्तिगत शक्ति होती है तथा पद दिया हुआ शक्ति होता है।




दीया हुआ शक्ति कभी भी छीना जा सकता है जबकि व्यक्तिगत शक्ति कभी नहीं छीना जा सकता। जो अध्यक्ष, उपाध्यक्ष का पद आपको दिया गया है, वह कभी भी छीना जा सकता है। अगर हम अपने अंदर लीडरशिप का गुण पैदा करते हैं, अर्थात अपने अंदर विशेषता का निर्माण करते हैं तो उसे कभी भी छीन नहीं जा सकता है। अर्थात उस योग्य व्यक्ति को ऊंचे पद पर बैठा कर संगठन का विकास कर सकते हैं।




कार्यकर्ता को दायरे में रहकर कार्य करना एवं भाषण देना
सभी कार्यकर्ताओं को ध्यान देने योग्य एक खास बात यह है कि जो कार्यकर्ता जिस भी जिले में काम करेंगे वह उद्देश्य व सिद्धांत को ध्यान में रखकर काम करेंगे। इस संगठन की जो कार्यप्रणाली है उसके दायरे में रहकर ही कार्यकर्ताओं को कार्य करना होगा। अगर कार्यकर्ता संगठन के कार्यप्रणाली के दायरे से हटकर काम करता है तो कार्यकर्ताओं की अहमियत अपने आप खत्म हो जाती है। संगठन जो भी कार्य प्रणाली बना कर देता है। हमें उसी कार्यप्रणाली पर कार्य करना है। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि संगठन ने जो काम करने के लिए मना किया है, वाह भी आप करने लगते हैं। संगठन कभी यह नहीं कहता कि आप समाज में जाओ और 33 करोड़ देवी देवताओं का चीड़ फाड़ करो। भाग्य भगवान पर चर्चा करो, संगठन ऐसा भी अनुमति नहीं देता।




देवी देवताओं का विरोध नहीं करना है
प्रायः देखने को मिलता है कि कार्यकर्ता समाज में जाकर इन्हीं बातों को ज्यादा उठाते हैं। अगर कार्यकर्ता समाज में जाकर ऐसी बातें करता है तो जो भी नया व्यक्ति यह सुनता है तो वह अपने मन में सोचता है कि राष्ट्रीय निषाद एकता परिषद और निषाद पार्टी का काम केवल 33 करोड़ देवी देवताओं और ब्राह्मणों को गाली देना ही है। दूसरी तरफ जो पुराना कार्यकर्ता है वह इस बात को समझता है मगर नया व्यक्ति इस तरह का बात सुनकर जाएगा तो समाज में गलत संदेश देगा। जब उस नए व्यक्ति से कोई पूछेगा कि भाई आप कहां गए थे? तब वह कहेगा, मैं राष्ट्रीय निषाद एकता परिषद और निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल (निषाद पार्टी) की मीटिंग में गया था।




जिनका देवी देवताओं का विरोध करने के अलावा कोई दूसरा काम नहीं है। ऐसा नकारात्मक संदेश वह राष्ट्रीय निषाद एकता परिषद और निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल के बारे में फैलाएगा। इसलिए इस तरह की बातें हमें समाज में नहीं करनी चाहिए। हमें संगठन के कार्य प्रणालियों के आधार पर काम करना चाहिए।

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