उत्तर प्रदेशलेखवैचारिकीसंदेशसाहित्य
योग्य नेतृत्व के अभाव में समाज की हालत बद से बदतर होती जाती है

बुद्धिजीवी वर्ग ही समाज का रीढ़ (आधार) होता है। यहां पर जो भी सह ऐसे हमारे समाज का बुद्धिजीवी वर्ग की समझ सकता है। यह बुद्धिजीवी वर्ग समाज की समस्याओं समझकर सरल तरीके से अपने समाज में जाकर बता सकता है। जब हम अपने इतिहास को गहराई से अध्ययन करते हैं तो पता चलता है कि हमारे पुरखों को स्वर्णों ने शिक्षा से वंचित रखा था। जिसकी वजह से हमारे पुरखे अनपढ़ और अज्ञानी बने रहे। सवर्णों ने हमारे पुरखों की अज्ञानता का फायदा उठाया जिसका परिणाम यह हुआ कि गुलामी की दीवार मजबूत होती चली गई और वह दीवार आज जस की तस खड़ी है। उसमें जरा भी परिवर्तन नहीं हुआ है, बल्कि थोड़ा बहुत सुधार हुआ है। सुधार और परिवर्तन दो अलग अलग बात है इसको हमें गहराई से समझने की जरूरत है।
पिछली पीढ़ी के संघर्ष का परिणाम:
हमारे पुरखों ने जो संघर्ष किया है उसी का परिणाम है कि आज हम थोड़ा बहुत पढ़ लिख लिये है। पढ़े लिखे होने के बावजूद भी हम सवर्णवादी व्यवस्था की गुलामी को नहीं समझ पा रहे हैं। आज की जो सामाजिक समस्या है वह अतिपिछड़ी जातियों के संबंध में है, इन्हें पिछड़ी जाति भी कहा जाता है। देश की मनुवादियों ने मूलवासी समाज को दो भागों में बांटा। सवर्णों ने मूलवासी जातियों को पिछड़ा कहा और अपने आपको अगड़ा कहा, अर्थात अपने आप को आगे रखा और हमें पीछे रखा। इसलिए सवर्णवादी व्यवस्था में हम पिछड़े हुए लोग है। कि में जो अतिपिछड़ी जातियां हैं, उनमें शिक्षा एवं नेतृत्व का अभाव है। यह उनकी समस्या का बहुत बड़ा कारण है। नेतृत्व का अभाव होने की वजह से अतिपिछड़ी जातियों की हालत बद से बदतर होती जा रही है।
अपने मूलवासी समाज के पिछड़ा/अतिपिछड़ा वर्ग के बुद्धिजीवी लोगों से कहना है कि हम अपने समाज का नेतृत्व करें अन्यथा हमारे समाज की जो हालत बदतर हो रही है, वह रुकने का नाम नहीं ले रही है। इसे रोकने के लिए हमे अपने समाज को जागृत कर उन्हें संगठित करना होगा। उन्हे उनकी गुलामी का एहसास कराना होगा। तब जाकर हम उन्हें जागृत कर सकते है अर्वसभी को जागृत करके व्यवस्था एवं सत्ता में परिवर्तन के लिए उन्हें तैयार कर सकते है। तभी हम व्यवस्था व सत्ता में परिवर्तन करके अपने भारत की खोई हुई सभ्यता को पुनः कायम कर सकते हैं और देश को फिर से सोने की चिड़ियां बना सकते है। अगर हम देश में क्रांति की आग पैदा कर देते हैं तो हमारा दुश्मन या तो हमारे देश को छोड़कर भाग जायेगा या फिर हमारे जूते के फीते खोलने को मजबूर हो जायेगा। लक्ष्यपरक एवं अनुशासित कार्यकर्ता ही कैडर होता है तथा कैडर वाला कार्यकर्ता ही संगठन, पार्टी और समाज का नेतृत्व करता है।
पिछली पीढ़ी के संघर्ष का परिणाम:
हमारे पुरखों ने जो संघर्ष किया है उसी का परिणाम है कि आज हम थोड़ा बहुत पढ़ लिख लिये है। पढ़े लिखे होने के बावजूद भी हम सवर्णवादी व्यवस्था की गुलामी को नहीं समझ पा रहे हैं। आज की जो सामाजिक समस्या है वह अतिपिछड़ी जातियों के संबंध में है, इन्हें पिछड़ी जाति भी कहा जाता है। देश की मनुवादियों ने मूलवासी समाज को दो भागों में बांटा। सवर्णों ने मूलवासी जातियों को पिछड़ा कहा और अपने आपको अगड़ा कहा, अर्थात अपने आप को आगे रखा और हमें पीछे रखा। इसलिए सवर्णवादी व्यवस्था में हम पिछड़े हुए लोग है। कि में जो अतिपिछड़ी जातियां हैं, उनमें शिक्षा एवं नेतृत्व का अभाव है। यह उनकी समस्या का बहुत बड़ा कारण है। नेतृत्व का अभाव होने की वजह से अतिपिछड़ी जातियों की हालत बद से बदतर होती जा रही है।
अपने मूलवासी समाज के पिछड़ा/अतिपिछड़ा वर्ग के बुद्धिजीवी लोगों से कहना है कि हम अपने समाज का नेतृत्व करें अन्यथा हमारे समाज की जो हालत बदतर हो रही है, वह रुकने का नाम नहीं ले रही है। इसे रोकने के लिए हमे अपने समाज को जागृत कर उन्हें संगठित करना होगा। उन्हे उनकी गुलामी का एहसास कराना होगा। तब जाकर हम उन्हें जागृत कर सकते है अर्वसभी को जागृत करके व्यवस्था एवं सत्ता में परिवर्तन के लिए उन्हें तैयार कर सकते है। तभी हम व्यवस्था व सत्ता में परिवर्तन करके अपने भारत की खोई हुई सभ्यता को पुनः कायम कर सकते हैं और देश को फिर से सोने की चिड़ियां बना सकते है। अगर हम देश में क्रांति की आग पैदा कर देते हैं तो हमारा दुश्मन या तो हमारे देश को छोड़कर भाग जायेगा या फिर हमारे जूते के फीते खोलने को मजबूर हो जायेगा। लक्ष्यपरक एवं अनुशासित कार्यकर्ता ही कैडर होता है तथा कैडर वाला कार्यकर्ता ही संगठन, पार्टी और समाज का नेतृत्व करता है।