उत्तर प्रदेश

आखिर घर बैठे बिना मोबाईल और इंटरनेट के कैसै पढ़ेंगें बच्चे!

After all, children will read how they are without mobile and internet at home!

कोरोना की वजह से देशभर में स्कूल बंद है। करीब एक साल से बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं, लेकिन ज्यादातर बच्चे ऐसे भी हैं जिन तक ऑनलाइन क्लास नहीं पहुंच सकी है। कई बच्चों के पास स्मार्टफोन नहीं है, कई बच्चों के पास इंटरनेट कनेक्शन नहीं है। ग्रामीण इलाकों में तो बिजली कनेक्शन और पर्याप्त लाइट नहीं होना भी एक बड़ी वजह है जिसके चलते करोड़ों बच्चे पढ़ाई से दूर रह गए हैं।
यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत के 32 करोड़ 7 लाख से ज्यादा बच्चे लॉकडाउन की वजह से पढ़ाई से दूर हो गए हैं।

एक सर्वे के मुताबिक हर पांच में से दो माता-पिता के पास बच्चों की ऑनलाइन क्लासेस के सेटअप के लिए ज़रूरी सामान ही नहीं है।
सरकार ने छात्रों के लिए ये तमाम मुफ्त ऑनलाइन सुविधाएं दी हैं लेकिन सच्चाई ये है कि ग्रामीण इलाक़ों में प्रति सौ लोगों पर केवल 21.76 व्यक्ति के पास इंटरनेट है तो ये छात्र पढ़ेंगे कहां? ग्रामीण इलाकों में तो नेटवर्क कनेक्टिविटी भी सही नहीं है, जहां है भी वहां 30 फीसदी लोगों के पास डाटा रिजार्ज करने के पैसे तक नहीं है।

पश्चिम बंगाल की एक बच्ची ने अपनी ज़िंदगी सिर्फ़ इसलिए ख़त्म कर ली क्योंकि वो कथित रूप से स्मार्टफ़ोन नहीं होने के कारण ऑनलाइन क्लास नहीं ले पा रही थी। असम में भी 15 साल का एक बच्चा कथित रूप से ऑनलाइन क्लास न अटैंड कर पाने की वजह से आत्महत्या कर लेता है और त्रिपुरा का एक पिता कथित रूप से अपनी बच्ची को एक अदद स्मार्टफ़ोन नहीं दे पाने की वजह से आत्महत्या कर लेता है.

भारतीय माँ-बाप का लक्ष्य यही होता है कि अगर उनके बच्चे पढ़ गये, तो उन्हें वो सब नहीं झेलना होगा, जो उन्होंने शिक्षा से दूरी होने के कारण झेला। लेकिन एक साल से लॉकडाउन लगने के बाद भारत के बच्चों का एक बड़ा वर्ग तत्काल उस कालखंड में पहुँच गया, जब सिर्फ़ एक ख़ास वर्ग के बच्चों को शिक्षा लेने का अधिकार था। मजबूरी की वजह से आये इस ऑनलाइन एजुकेशन के दौर में ‘शिक्षा का अधिकार’ सिर्फ़ स्मार्टफ़ोन या लैपटॉप डिवाइस रखने वालों के पास सिमट कर रह गया है और जिनके पास डिज़िटल डिवाइस नहीं हैं, वो ऑनलाइन हुए स्कूलों से गायब हो रहे हैं।

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